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शिल्पी ग्राम(अनुसूचित जाति एवं जनजाति)

                उत्तराखण्ड में निवास करने वाले अनुसूचित जाति ,जनजाति  समुदाय का मुख्य साधन परम्परागत हस्त शिल्प रहा है। उत्तराखण्ड की जनसंख्या में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 17.50 प्रतिशत तथा जनजाति की जनसंख्या 3  प्रतिशत है। इन समुदायों में हस्त शिल्प पारम्परिक रूप से विकसित होता रहा और पीढ़ी दर पीढ़ी हस्त शिल्प कौशल हस्तान्तरित होता रहा है। आधुनिक बाजार ,आर्थिकी तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ राजकीय सेवाओं में भागीदारी तथा आवश्यक अवस्थापना सुविधाओं के अभाव में हस्त शिल्प में संलग्न परिवार तथा उत्पाादित सामग्री की गुणवत्ता में हा्रस की स्थिति उत्पन्न हुई है। नवोदित राज्य उत्तराखण्ड में लुप्त हो रहे पारम्परिक शिल्पों को पुर्नजीवित करने तथा प्रोत्साहित करने हेतु उत्तराखण्ड शासन द्वारा शिल्पी ग्राम की एक महत्वाकांक्षी योजना आरम्भ की गई है। इससे एक तरफ पारम्परिक कौशल समाप्त होने से बचेगा वहीं उन शिल्पों में कार्यरत शिल्पी अपने कौशल के आधार पर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि हस्त शिल्प में मुख्यतः अनुसूचित जाति एवं जनजाति के परिवार ही संलग्न हैं।

                शिल्पी ग्राम योजना अन्तर्गत शिल्प ग्रामों का सर्वेक्षण शिल्पियों का चिन्हांकन ,कुशल शिल्पी से अर्द्धकुशल तथा अकुशल शिल्पियों का प्रशिक्षण एवं शिल्पी ग्रामों में अवस्थापना विकास ,विपणन की व्यवस्था आदि समाहित की गई है।

  • योजना का उद्देश्य
  • परम्परागत शिल्पों को रोजगारपकर ,आयजनित गति विधि के रूप में विकसित करना।

सर्वप्रथम परम्परागत शिल्पों की पहचान जिनमें संलग्न शिल्पियों का चिन्हांकन करना तथा उनकी दक्षता के अनुसार कुशल एवं अकुशल की श्रेणी में वर्गीकरण करना एवं पंजीकरण करना।

  • इन शिल्पों में संलग्न परिवारों को समुचित प्रशिक्षण देना ताकि उनकी कार्यकुशलता एवं दक्षता में अभिवृद्धि की जा सके।
  • नई तकनीकों एवं डिजायनों का प्रचार एवं अनुसन्धान करना।
  • शिल्पी परिवारों को शिल्प अभिमुखीकरण प्रशिक्षण देना तथा शिल्पों के बारे में उनकी सम्पूर्ण जागरूकता स्तर की अभिवृद्धि करना।
  • कौशल प्राप्त शिल्पी की पाहचान करना तथा उसे पंजीकृत करना।
  • शिल्पियों के संबंध में आधारभूत सूचनाएं तैयार करना जिसके आधार पर वित्तपोषण ,कच्चे माल की आपूर्ति ,उत्पादित सामग्री का संकलन एवं विपणन आदि की व्यवस्था करवाना।
  • विपणन प्रोत्साहन हेतु हाट ,मेले ,प्रदर्शनी आदि में उत्पादों को विक्रय करने के लिये सुविधा प्रदान करना।
  • शिल्प एवं शिल्पकारों से संबंधित विषयों पर परिचर्चाएं ,संगोष्ठी एवं कार्य शालाएं आयोजित करना।
  • कच्चे माल के डिपो यथाः ऊन बैंक, लकड़ी बैंक की स्थापना करना। इसी प्रकार कच्चे माल के लिये गोदाम हाट इम्पोरियम बनाना।
  • शिल्पी परिवारों हेतु कल्याण निधि की स्थापना करना।
  • राज्य में गठित विभिन्न बोर्ड यथाः उत्तराखण्ड बम्बू एण्ड फाइवर डेवलपमेन्ट बोर्डशीप एण्ड वूल डेवलपमेन्ट बोर्ड के साथ योजना के क्रियान्वयन हेतु समन्वय स्थापित करना।

            इस योजना के अन्तर्गत राज्य के सभी चयनित विकासखण्ड आच्छादित होंगे। इसके लिये एक सुनियोजित एवं त्रुटिरहित सर्वेक्षण कराया जायेगा जिसे समय-समय पर अद्यावधिक किया जायेगा। इसके अतिरिक्त योजना क्रियान्वयन के अध्ययन मूल्यांकन एवं अनुश्रवण की कार्यवाही भी किया जाना आवश्यक है। क्याsकि इससे योजना की सफलता प्रगति एवं क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाईयों की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। सर्वेक्षण अध्ययन एवं सत्त अनुश्रवण हेतु परामर्शदाताओं की नियुक्ति  विशेषज्ञ सेवाओं को प्राप्त करने शिल्प ग्रामों ,शिल्पियों एवं शिल्प परिवारों के विषय में आधारभूत डाटा एवं सूचनाएं तैयार करने तथा शिल्पियों के पहचान पत्र बनाने की भी कार्यवाही की जायेगी। योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षण तीन स्तर पर दिया जायेगा। पहले जागरूकता सृजन एवं अभिमुखीकरण तत्पश्चात प्रारम्भिक प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक प्रशिक्षण व्यवसायिक प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरान्त शिल्पियों द्वारा उत्पाादित वस्तुओं की गुणवत्ता की समीक्षा की जायेगी कि क्या प्रशिक्षार्थियों द्वारा उत्पाादित वस्तु बाजार में प्रतिस्पर्धा में टिकेगी अथवा नहीं। यदि गुणवत्ता में कमी होगी तो विशेष प्राविधान के तहत प्रशिक्षण को अधिकतम तीन माह तक और बढ़ाया जायेगा।

                उत्पादित वस्तुओं के विपणन हेतु वस्तु की कीमत बाजार की स्थितियों एवं लागत के अनुसार तय की जायेगी। उत्पादित वस्तुओं का प्रचार-प्रसार किया जायेगा। वस्तुओं के विपणन हेतु सम्भावित बाजार तथा वस्तुओं की मांग का सर्वेक्षण कराया जायेगा । शिल्पियों से विभिन्न प्रकार के नमूने प्राप्त कर उन्हें यात्रा मार्ग में पर्यटन विभाग द्वारा निर्मित केन्द्रों में प्रदर्शित किया जायेगा एवं प्रतिष्ठित आगन्तुकों को उपहार स्वरूप दिया जायेगा ताकि पर्यटकों में विक्री को बढ़ावा मिल सके एवं शिल्पी ग्राम योजना पर्यटन के साथ जुड़ सके। केन्द्रीय स्थलों पर स्थाई हाट निर्माण किया जायेगा तथा अस्थाई टैन्ट के रूप में सार्वजनिक स्थान पर भी सुविधा दी जायेगी और ऐसे स्थाई भवनों के लिए शिल्पियों से आवेदन पत्र प्राप्त किये जायेंगे अथवा शिल्पियों से ही निविदाएं आमंत्रित की जायेंगी। शिल्प उत्पादों के उत्तराखण्ड ब्राण्ड का मानकीकरण किया जायेगा। जैसेः उत्तराखण्ड ऊनी कार्पेट आदि।

तकनीकी एवं सहायक सुविधाएंः-    इसके अन्तर्गत शिल्पियों को परामर्श एवं भ्रमण कराया जायेगा जिसके तहत अन्य पर्वतीय राज्यों यथाः हिमांचल प्रदेश ,जम्मू कश्मीर ,मणिपुर अथवा ऐसे राज्यों में भ्रमण कराया जायेगा जहां हस्त शिल्प के क्षेत्र में अच्छा विकास हुआ हो और अनुसूचित जाति के शिल्पी बहुलता में हो। शिल्पियों में प्रतिस्पद्र्धा की भावना जगाने के लिये उत्कृष्ठ शिल्पियों को पुरूष्कार आदि की व्यवस्था भी की जायेगी। इसके अतिरिक्त शिल्प विकास गतिविधि आदि के संचालन राष्ट्रीय ,अन्तर्राष्ट्रीय मेलों , गोष्ठियों में इन उत्पादकों की भागीदारी सुनिष्चिितश्चत कराने हेतु आने-जाने व ठहरने की व्यवस्था निःशुल्क कराई जायेगी। इस प्रकार यातायात ,परामर्श ,भ्रमण,उत्कृष्ठता पुरूष्कार की व्यवस्था भी प्रस्तावित की जायेगी।

                व्यवसाय विकास हेतु अवस्थापना विकास एक आवश्यक शर्त है जिसमें मुख्यतः संचार सुविधा ,बिजली ,पानी ,सड़क ,कच्चे माल  एवं बाजार की सुविधा ,सामूहिक सुविधाएं, विपणन की गतिविधियों का संगठन एवं उत्पाकता वृद्धि सम्मिलित है। प्रथम चरण में दो केन्द्रीयकृत शिल्प ग्राम इम्पोरियम उपयुक्त स्थान पर खोला जाना भी प्रस्तावित है जिसके लिये रू 50 लाख प्रति केन्द्र की व्यवस्था की जायेगी।

                योजना के सफल एवं प्रभावी क्रियान्वयन के निमित्त सत्त अनुश्रवण एवं समीक्षा हेतु एक राज्य स्तरीय समीक्षा समिति का गठन प्रमुख सचिव/ सचिव , समाज कल्याण ,उत्तराखण्ड शासन की अध्यक्षता में गठित किया गया है जिसके सदस्य मुख्य अधिशासी अधिकारी , बम्बू बोर्ड , मुख्य अधिशासी अधिकारी , लाइव स्टाक डेवलपमेन्ट बोर्ड ,मुख्य अधिशासी अधिकारी ,शीप एण्ड वूल बोर्ड ,समन्वयक ,उत्तराखण्ड आॅर्गनिक बोर्ड ,प्रबन्ध निदेशक,उत्तराखण्ड बन निगम ,निदेशक, उद्योग ,महा प्रबन्धक, उत्तराखण्ड बहुउद्देशीय वित्त एवं विकास निगम हैं।